ये रातें,ये मौसम बदल से रहे हैं
इस चाहत से राहत थम सी गई है
ये उम्मीदों के बादल खो से रहे है
ये गाड़ी सपनो की रुक सी गई है
इस दिल में जज्बा हैं,लेकिन हाथो मे जंजीर मन ने बांध दी है
निहत्था सा हूं, पर हथकड़ी सी लगी है
इस समय के आंचल ने जिम्मेदारी लाद दी है
मन ने चुराया दिल को, ये कैसी ठगी है,,
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