एक एक बूंद का हिसाब,एक बहुत बड़ा राज
ये इस कव्वाली की शराब,या मूर्खो का सरताज
इधर नही है,दो चार बात, फिर फिकर नही है
जिधर भी है, पर ये मत कहना की जिगर नही है
ये दंगल विद्वानों का, दिल से सारे नंगे
भवन ये मंगल ,सयानो का,मैं ही क्यूं बांधू सबके फंदे
एक जानकारी, जनहित मैं जारी, निभाऊं जिम्मेदारी?
नही नही!जड़ बुद्धि है सारी,..फिर बुद्धि जिम्मेदारी से क्यों हारी?
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