आज नन्हीं धड़कन पूछ उठी किया है मेरी धरा का कष्ट ?
चेहरा सींचकर बापू बोले, नाही सिर्फ नेता है भ्रष्ट,
इस हीरे की खदान में कंकर ज्यादा मिलने लगे हैं,
कुछ अपनी मां का कत्ल करके, और कुछ बुजदिल बन उठे है।।
प्रमोद, प्रफुल्लित हयात तेरी, देन उस निस्वार्थ वृक्ष की,
माया तेरी जटिल सही, पर क्या कभी सोची भूमि हित की,
धरती के मंदिर में बैठी मां, वात्सल्य है उनकी आंखों में,
पुत्र ही तोड़ गए मंदिर, खड़े करने को बंगले लाखों के।।
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